सबसे अच्छी मम्मी
सबसे अच्छी मम्मी
नन्हा सोमू बहुत जिद्दी था। जिद चढ़ जाती तो माँ की बाँहों से फिलल-फिसल जाता, हाथ पैर फेंकता, बिल्कुल बेकाबू हो रहता।
मम्मी सुंदर, जवान वैसे तो काफी धैर्यवान् थी। अपने दुलारे पर हर माँ की तरह जान छिड़कती लेकिन इंसानी फितरत...एकदम अनप्रेडिक्टेबल। क्या कहा जा सकता है कब क्या कर बैठे। समाज ने उस पर भले लाख अंकुश लगाए हों।
पापा सुबह जाकर देर रात तक काम से लौटते। मम्मी को अकेले ही सोमू की देखभाल करनी पड़ती।
आज भी सोमू उखड़ गया था। बरस वो जिद चढ़ी कभी मम्मी के गाल कभी आँखें कभी बाल नोचे,.,.चिल्लाए...एकदम बेकाबू। जाने क्या हुआ मम्मी को पल भी नहीं लगा सोमू को कंस की तरह फर्श पर दे मारा।
सोमू सहमकर चुप हो गया। मम्मी वो पल याद करती और रोती। साल दर साल बीते सोमू जवान सुंदर सजीला युवक बन गया। मम्मी देखती, गर्व से भर उठती दूसरे ही पल वो पल याद आ जाता। अगर मेरे सोमू को कुछ हो जाता ?
सोमू...मातृभक्त सोमू अपनी मम्मी को दुनिया की सबसे अच्छी मम्मी समझता।